बुझी आरजू - कविता
नहीं जलाना आज एक भी चिराग अपने आँगन में मुझे |
के मुझे नज़र नहीं मिलानी
न खुद से, न किसी और से ..
के रहने दो मुझे इस अँधेरे में
तनहा सी, खोयी सी..
के रौशनी से अब करना है परहेज़
छेड़ो नहीं, तलाशो नहीं ..
के समाले मुझे ये सियाही अपनी आगोश में
छुपाले मुझे, गले लागले मुझे ..
के खोना है मुझे इस काले साए में
चुप सी, खामोश सी ..
नहीं जलाना आज कोई भी चिराग, अपने आँगन में मुझे |
-Asra Ghouse